हमारे शासक भ्रष्ट हो सकते हैं / पर भारत के लोग मूर्ख नहीं हो सकते / खाद्यान्न सुरक्षा कानून रिश्वतखोरों के द्वारा जनता को वोट देने के एवज़ में घूस देने का प्रयास है और इस कुत्सित प्रयास में सभी पार्टियाँ शामिल हैं /
लाखों टन अनाज सरकारी गोदामों में सड़ गए फिर भी सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद देश के गरीबों में ये अनाज नहीं बांटे गए / आज जब चुनाव नजदीक आये तो इन भ्रष्टों को गरीबों के प्रति सहानभूति होने लगी ताकि ये फिर सत्ता में आयें और देश को और लूटें / इनका कोई भी घोटाला लाख करोड़ के नीचे का नहीं होता है /
करंट अकाउंट डेफिसिट भांड में जाये, एक डॉलर की कीमत एक सौ तक भी पहुँच जाये तो कोई बात नहीं, मुद्रा स्फीति बेलगाम हो जाये तो कोई बात नहीं, बेरोज़गारी जो ऐसे घातक क़दमों से सीधा जुड़ा हुआ है निराशाजनक स्थिति में पहुँच जाय तो भी कोई बात नहीं , ये तो मुफ्त का अनाज, क़र्ज़ माफ़ी, लैपटॉप, मंगलसूत्र, काश ट्रान्सफर, डीज़ल अनुदान आदि जैसे राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था को क्षति पहुँचाने वाले काम करेंगे ही/ क्योंकि विकास ये कर नहीं सकते/ देश की आजादी के ६६ वर्षों बाद भी दो तिहाई आबादी को २४ घंटे में एक वक्त का भोजन मयस्सर नहीं होता/ और ये भ्रष्ट ५ रूपये में भरपेट खाना खिलाने की नसीहत देते हैं/ असंख्य लोग कुपोषण से ग्रस्त हैं /
राजस्व नियंत्रण तथा वित्त प्रबंधन के कोई प्रभावकारी उपाय आज देश के नेतृत्व के पास नहीं है,यदि इस देश की आर्थिक स्थिति और भी अधिक जर्जर हुई तो पूरा देश भयानक अव्यवस्था में फँस जायेगा/
लोगों को चाहिए कि भ्रष्ट नेताओं के द्वारा मुफ्त के सामान ज़रूर लें लेकिन मुफ्तखोर बनाने की उनकी साज़िश से दूर रहें और वोट तो कभी न दें/
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